पटना, १६ दिसम्बर। लोकभाषाओं को लोकप्रिय बनाने के लिए आवश्यक है कि लेखक कविगण अपनी रचनाओं में ‘देशज’ शब्दों का प्रयोग करें। तत्सम शब्दों से इसकी मौलिकता नष्ट होती है। आकाशवाणी के पूर्व सहायक निदेशक और दूरदर्शन के पूर्व कार्यक्रम प्रमुख डा ओम् प्रकाश जमुआर ने अपने मगही उपन्यास में बिहार के एक चर्चित घोटाले की कथा के माध्यम से शासन में व्याप्त व्यवस्था के दोषों को उजागर किया है।यह बातें, शुक्रवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, सम्मेलन के पूर्व अध्यक्ष और आधुनिक हिन्दी की प्रथम पीढ़ी के स्तुत्य साहित्यकार महामहोपाध्याय पं सकल नारायण शर्मा की जयंती पर डा जमुआर के सद्यः प्रकाशित मगही उपन्यास ‘पेंशन के बताशा’ का लोकार्पण करते हुए, भूपेन्द्र नाथ मण्डल विश्वविद्यालय, मधेपुरा के पूर्व कुलपति और वरिष्ठ साहित्यकार प्रो अमरनाथ सिन्हा ने कही। उन्होंने कहा कि लोकार्पित पुस्तक ‘चारा-घोटाला’ पर केंद्रित है। यह मात्र किसी एक घोटाले की कथा नहीं है। वस्तुतः यह आधुनिक राजनीति और शासन में व्याप्त व्यवस्था के दोषों की ओर संकेत है।समारोह के मुख्य अतिथि और दूरदर्शन, बिहार के कार्यक्रम-प्रमुख डा राज कुमार नाहर ने कहा कि डा जमुआर बहुमुखी प्रतिभा के सारस्वत व्यक्तित्व हैं। इन्हें साहित्य से ही नहीं, कला और संगीत से और सामाजिक सरोकारों से भी गहरा जुड़ाव है। आकाशवाणी और दूरदर्शन में महत्त्वपूर्ण पदों पर कार्य करते हुए इन्होंने अपने आंतरिक गुणों को भी प्रकाशित किया।सभा की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने, लोक-साहित्य में एक मूल्यवान अवदान के लिए लेखक को बधाई दी तथा कहा कि भारत की लोकभाषाएँ वे पुण्य-सलीला सरिताएँ हैं, जिनके संगम से हिन्दी रूपी गंगा का गात्र विशाल और समृद्ध होता है। उन्होंने अपने पूर्व अध्यक्ष पं सकल नारायण शर्मा का स्मरण करते हुए, उन्हें हिन्दी का भीष्म-पितामह बताया और कहा कि खड़ी बोली के उन्नयन में महान योगदान देने वाली प्रथम पीढ़ी के सर्वाधिक आदरणीय साहित्यकारों में पं शर्मा की गणना होती है। उनकी विद्वता और हिन्दी-सेवा से उनकी पूरी पीढ़ी प्रभावित रही। सभापति के रूप में, सम्मेलन के चौथे अधिवेशन को संबोधित करते हुए, उन्होंने जो व्याख्यान दिए, वह बिहार में साहित्यिक प्रगति का एक प्रामाणिक अभिलेख है।उपन्यास के लेखक डा ओम् प्रकाश जमुआर, सम्मेलन के उपाध्यक्ष मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’, डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, डा ध्रुव कुमार, डा अशोक प्रियदर्शी, बच्चा ठाकुर तथा चंदा मिश्र ने भी अपने विचार व्यक्त किए।इस अवसर पर आयोजित लघुकथा-गोष्ठी में, वरिष्ठ कथाकार मधुरेश नारायण ने ‘आत्म-बोध’ शीर्षक से, डा पुष्पा जमुआर ने ‘लाइक’,सिद्धेश्वर ने ‘बेटा बेटी एक समान’, श्याम बिहारी प्रभाकर ने ‘खुदगर्ज़’, बसंत गोयल ने ‘मुनिया का सपना’, अजीत कुमार भारती ने ‘प्रेम प्रतीक तथा अश्विनी कविराज ‘सूनी गोद’ शीर्षक से अपनी लघुकथा का पाठ किया। मंच का संचालन कुमार अनुपम ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।वरिष्ठ कथाकार चित रंजन लाल भारती, कवि जय प्रकाश पुजारी, कवयित्री डा सुषमा कुमारी, ज्ञानेश्वर शर्मा, कमल किशोर ‘कमल’, राकेश दत्त मिश्र, डा पंकज कुमार सिंह, रामाशीष ठाकुर, डा चंद्रशेखर आज़ाद, विजय कुमार दिवाकर, कौशलेंद्र कुमार समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।