११ अगस्त, पटना / ‘मेरा धन है स्वाधीन कलम’ के अमर रचनाकार कविवर गोपाल सिंह नेपाली तथा मनोविज्ञान के साहित्यकार मेजर बलवीर सिंह ‘भसीन’ की जयंती पर रविवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में कवयित्रियों का साम्राज्य रहा। हरे रंग के परिधानों में सज-धज कर आयीं कवयित्रियों ने सावन के रस में भीगी कविताओं से श्रोताओं को सरावोर कर दिया। सम्मेलन में ‘सावन महोत्सव कवयित्री-सम्मेलन का आयोजन किया गया था। तीन दर्जन से अधिक कवयित्रियों ने अपनी सतरंगी रचनाओं का पाठ किया।कवयित्री सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। उसके पश्चात वरिष्ठ कवयित्री आराधना प्रसाद ने इन पंक्तियों से सावन का आह्वान किया कि “मेरी साधना, व्रत, उपासना सबकुछ तुझको अर्पित है/ हिय की धड़कन अधर की विहँसन तेरे लिए समर्पित है”। डा पुष्पा जमुआर ने सावन का चित्र इस प्रकार खींचा कि ” बूँद की रुनझुन पहन कर पायल/ घटाएँ सावन की बरस रही झमाझम”। अभिलाषा सिंह का कहना था कि ” छोड़ गए हो जबसे साजन/ सता रहा यह निष्ठुर सावन”।डा पूनम आनन्द ने जब यह कहा कि “जब मेघों ने ली अंगड़ाई/ बौखलाई गर्मी जा कहीं दुबकाई” तो हाथ खोलकर श्रोताओं ने गीत का स्वागत किया। प्रो पुष्पा गुप्ता के विरह गीत “पड़े रिमझिम फुहार/ आयी बरखा बहार/ गोरियाँ करे मनुहार/ अब आजा बलम परदेसी!” को भी बड़े प्रेम से सुना गया। डा पूनम सिन्हा श्रेयसी ने अपनी भावना इस रूप में व्यक्त की कि “तपते मन के आँगन में अब बूँदों की बौछार लिखूँ/ रिमझिम रिमझिम बारिश में फिर प्रेम भरा मनुहार लिखूँ।”वरिष्ठ कवयित्री डा सुधा सिन्हा, डा सुमेधा पाठक, इंदु उपाध्याय, लता प्रासर, मीरा श्रीवास्तव, राजकांता राज, मधुरानी लाल, डा प्रतिभा रानी,डा अनिता मिश्र सिद्धि, डा विद्या चौधरी, सुनीता रंजन, ज्योति मिश्रा, नीता सहाय, कुमारी उषा सिंह, निशा पराशर, कुमारी मेनका आदि कवयित्रियों ने ऋंगार-रस में डूबी अपनी सुमधुर रचनाओं से श्रोताओं को सरापा भिगो दिया।कवयित्री-सम्मेलन के पूर्व सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ की अध्यक्षता में नेपाली जी और मेजर भसीन को श्रद्धापूर्वक स्मरण किया गया। डा सुलभ ने कहा कि नेपाली जी विलक्षण प्रतिभा के स्वाभिमानी और राष्ट्रभक्त कवि थे। वे प्रेम, प्रेरणा और ऋंगार के स्वर तथा अपने समय के सबसे लोकप्रिय कवि थे। भारत-चीन युद्ध के दौरान, देश-जागरण के उनके गीतों के कारण, उन्हें ‘वन मैन आर्मी’ कहा जाने लगा था। उनकी लेखनी से गीतों की निर्झरनी बहती थी। उनकी पंक्तियाँ “बदनाम तो हैं बँटमार मगर, घर को रखवालों ने लूटा/ मेरी दुलहन सी रातों को नौ लाख सितारों ने लूटा”, आज भी मन के किसी कोने में गहरे उतर जाती है।डा सुलभ ने कहा कि, नेपाली जी शब्दों, भावों और काव्य-कल्पनाओं के ही नहीं ‘स्वाभिमान’ के भी धनी थे। उन्होंने कभी भी अपने स्वार्थ में, न तो किसी की निंदा की और न ही किसी का वंदन ही किया। उन्होंने अपनी इन पंक्तियों में ही विराट चेतना का परिचय दिया कि, “लिखता हूँ अपनी मर्ज़ी से/ बचता हूँ कैंची दर्ज़ी से/ आदत न रही कुछ लिखने की निन्दा-वंदन ख़ुदगर्ज़ी से/ तुम दलबंदी में लगे रहे, यह लिखने में तल्लीन कलम/ मेरा धन है स्वाधीन कलम”। नेपाली की ये पंक्तियाँ संसार के सभी नेक कवियों के संकल्प की अभिव्यक्ति है। मेजर भसीन को स्मरण करते हुए उन्होंने कहा कि मेजर साहेब सिद्धांतों पर अडिग रहने वाले एक सच्चे और अच्छे भारतीय कवि थे। उनका राष्ट्रवाद मानवजाति की एका से उपजी भारतीयता में था। उनका काव्य-संग्रह ‘एक हिंदुस्तानी की खोज’ उनके उन्हीं विचारों की अभिव्यक्ति है।समारोह के मूख्य अतिथि और विधान-पार्षद डा राज वर्द्धन आज़ाद ने कहा कि नेपाली जी को हमने बचपन में ही पढ़ा था। उनके गीत मन को झकझोरते हैं। उद्योग विभाग में विशेष सचिव दीलीप कुमार, भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी बच्चा ठाकुर और डा ओम् प्रकाश पाण्डेय ने भी दोनों वरेण्य कवियों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की। मंच का संचालन कवयित्री डा शालिनी पाण्डेय ने किया।प्रबुद्ध श्रोताओं में कवि जय प्रकाश पुजारी, प्रो सुशील कुमार झा, कृष्णरंजन सिंह, विनोद कुमार झा, सूर्य प्रकाश उपाध्याय, नीरव समदर्शी, भास्कर त्रिपाठी, डा विजय कुमार, विपिन चंद्र, साकिब हुसैन, डा चंद्रशेखर आज़ाद सम्मिलित थे।