जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 18 मार्च, पटना 2025 ::”रमजान का महीना” के संबंध में आईना- ए- जमाल, साप्ताहिक समाचार पत्र के संपादक मो० नैयर आजम से हुई विस्तार से वार्ता के आलोक में संदर्भित है कि मुसलमानों के लिए “रमजान का महीना” को रहमत का महीना कहा जाता है। रमजान का महीना कोई सामान्य महीना न होकर जहन्नम से निजात पाने के मौके का महीना होता है। इस महीने में मुसलमानों पर अल्लाह खास रहमतें बरसाता है, उनकी प्रार्थना कबूल करता है और उनके गुनाहों को माफ करता है। इसलिए “रमजान का महीना” मुसलमानों को परहेज करना, बर्दास्त करना, आत्मसंयम बढ़ाना, मुसलमान गरीबों की तकलीफ को समझना और अल्लाह की प्रार्थना करने में अपने को वयस्थ (बिजी) रखने का बहुत ही अच्छा महीना होता है।मुसलमानों का माने तो “रमजान का महीना“ इस्लाम में बहुत ऊंचा स्थान पाने का रास्ता है। यह महीना सिर्फ अल्लाह के लिए प्रार्थना करने का नहीं होता है बल्कि अपने आप को सुधारने, खुदा से जुड़ने और अच्छे कामों में बढ़-चढ़कर भाग लेने का समय भी होता है। हदीस शरीफ में मान्यता है कि जब रमजान का महीना आता है तो स्वर्ग के दरवाजे खुल जाते हैं और नरक के दरवाजे बंद हो जाते हैं। दुष्ट आत्माओं (शैतानों) को जंजीरों में बांध दिया जाता है। अल्लाह के दूत के अनुसार, “जो मुसलमान ईमानदारी और सही नियत से रमजान महीने का रोजा रखते हैं, उनके सभी तरह के किए गए पुराने पाप माफ हो जाते हैं।” रोजा की शक्ति और लाभ के संबंध में अल्लाह का आदेश है कि “ऐ ईमान वालों, तुम पर रोजे फर्ज किए गए, जैसे तुमसे पहले वालों पर किए गए थे, ताकि तुम तकवा हासिल करो।” रोजा मुसलमान को स्वयं पर रोक लगाने की ताकत देता है। यह महीना केवल खाने-पीने से दूर रहने के लिए नहीं होता है, बल्कि हर बुरी चीज से परहेज करने का होता है।रोजा रखने से शरीर और आत्मा के लिए कई लाभ होते हैं । रोजा रखने से अल्लाह से संबंध मजबूत होता है और किए गए पाप से दूर रहने की आदत बनती है। रोजा रखने से भूख-प्यास सहने की ताकत मिलता है और शरीर धैर्यवान बनता है। वैज्ञानिक तरीकों से देखा जाए तो रोजा रखने से शरीर को डिटॉक्स करता है, पाचन प्रक्रिया को आराम मिलता है और इम्यून सिस्टम मजबूत होता है। जब रोजा रखने वाले स्वयं भूखा प्यासा रहकर भूख और प्यास को महसूस कर सकता है तो गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करने का हौसला बढ़ता है। हदीस के अनुसार “जो व्यक्ति इमानदारी और सत्य की नीयत से रमजान महीने में रात की नमाज पढ़ता है उसके सभी पिछले पाप (गुनाह) माफ कर दिए जाएंगे।” रमजान महीने में कुरआन का अध्ययन जितना अधिक होगा उतना अच्छा है क्योंकि कुरआन ए-पाक इसी महीने में अवतरित हुआ था।रमजान के महीने में तीन अशरे और उनकी दुआएं का प्रावधान है, जिसके तहत पहले दस दिन अल्लाह की रहमत बरसती है, जिसे पहला अशरा कहते हैं और इस अशरा में मुसलमान लोग दुआ करते हैं कि “ऐ मेरे रब! मुझे बख्श दे और मुझ पर रहमत कर, तू सबसे बढ़कर रहम करने वाला है।” दूसरे दस दिन अल्लाह से गुनाहों की माफी मांगी जाती हैं, इसे दूसरा अशरा कहते हैं और इस अशरा में मुसलमान लोग दुआ मांगते हैं कि “मैं अल्लाह से अपने तमाम गुनाहों की माफी मांगता हूं और उसकी तरफ रुजू करता हूं।” आखिरी दस दिन जहन्नम से आजादी मांगी जाती है, जिसे तीसरा अशरा कहते हैं और इस अशरा में मुसलमान लोग दुआ करते हैं कि “ऐ अल्लाह ! हमें जहन्नम की आग से बचा ले।” रमजान का महीना पूरा होने पर ईद-उल-फितर मनाया जाता है। ईद-उल-फितर खुशी ख़ुशी के रूप में मनाया जाता है। इसमें मुसलमान इबादत के साथ-साथ अपने घरवालों, रिश्तेदारों और गरीबों के साथ खुशी बांटते हैं। ईद-उल-फितर से पहले सदका-ए-फितर देना सही समझते है, ताकि दिए गए दान से गरीब और जरूरतमंद लोग भी ईद की खुशियों में शामिल हो सकें। ईद-उल-फितर के दिन गुस्ल ( साफ पानी से पूरे शरीर को धोना) करना और साफ-सुथरे कपड़े पहनना ईद-उल- फितर की नमाज अदा करना। मीठी चीज (खजूर या सेवई) खाकर ईदगाह जाना। ईदगाह से रास्ता बदलकर घर वापस आना। अल्लाह का शुक्र अदा करना और तकबीर (ईश्वर की प्रार्थना) पढ़ना, प्रार्थना में- “अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, ला इलाहा इल्लल्लाह, वल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, वलिल्लाहिल हम्द।” पढ़ते है।
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