कौशलेन्द्र पाराशर की रिपोर्ट /में चुनाव आयोग का प्रतिनिधित्व कर रहे एक वकील ने आयोग के वकीलों के पैनल से इस्तीफा दे दिया है. वकील ने इस्तीफा देते हुए कहा कि उनके मूल्य चुनाव आयोग के मौजूदा कामकाज के अनुरूप नहीं हैं. वकील मोहित डी राम 2013 से सुप्रीम कोर्ट में आयोग के लिए वकील के तौर पर काम कर रहे थे.मोहित डी राम ने अपने इस्तीफे में कहा कि- “मैंने पाया कि मेरे मूल्य निर्वाचन आयोग के मौजूदा कामकाज के अनुरूप नहीं हैं और इसलिए मैं सुप्रीम कोर्ट के समक्ष इसके पैनल के वकील की जिम्मेदारियों से अपने आप को मुक्त करता हूं.” उन्होंने कहा मैं अपने कार्यालयों में सभी लंबित मामलों में फाइलों, एनओसी और वकालतनामाओं का सुचारू रूप से चले. कोर्ट में विधानसभा चुनाव को लेकर मद्रास हाईकोर्ट की टिप्पणियों पर गुरुवार को सुनवाई हुई थी. सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि कोविड-19 के मामले बढ़ने के लिए निर्वाचन आयोग को जिम्मेदार ठहराने वाली मद्रास उच्च न्यायालय की आलोचनात्मक टिप्पणियों को हटाने का सवाल ही नहीं उठता क्योंकि ये न्यायिक आदेश का हिस्सा नहीं है और साथ ही उसने मीडिया को न्यायिक कार्यवाही के दौरान टिप्पणियों की रिपोर्टिंग करने से रोकने का अनुरोध भी ठुकरा दिया. न्यायालय ने कहा कि यह एक ‘‘प्रतिगामी’’ कदम होगा.न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने हालांकि यह माना कि उच्च न्यायालय की टिप्पणियां ‘‘कठोर’’ थी और ‘‘बिना सोचे-समझे की गई टिप्पणियों की गलत व्याख्या किए जाने की आशंका होती है.’’पीठ ने कहा कि मीडिया को सुनवाई के दौरान की गई टिप्पणियों की रिपोर्टिंग करने से रोका नहीं जा सकता.शीर्ष अदालत ने कोविड-19 के दौरान सराहनीय काम करने के लिए उच्च न्यायालयों की प्रशंसा करते हुए कहा, ‘‘उच्च न्यायालयों को टिप्पणियां करने और मीडिया को टिप्पणियों की रिपोर्टिंग करने से रोकना प्रतिगामी कदम होगा.’’पीठ ने कहा कि अदालतों को मीडिया की बदलती प्रौद्योगिकी को लेकर सजग रहना होगा. उसने कहा कि यह अच्छी बात नहीं है कि उसे न्यायिक कार्यवाही की रिपोर्टिंग करने से रोका जाए.यह फैसला मद्रास उच्च न्यायालय की टिप्पणी के खिलाफ निर्वाचन आयोग की एक अपील पर आया है.उच्च न्यायालय ने कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान संक्रमण के मामले बढ़ने के लिए 26 अप्रैल को चुनाव आयोग की आलोचना करते हुए उसे इस संक्रामक रोग के फैलने के लिए जिम्मेदार बताया था और उसे ‘‘सबसे गैरजिम्मेदार संस्थान’’ बताया और यहां तक कि यह भी कहा था कि उसके अधिकारियों पर हत्या का मुकदमा चलाना चाहिए.