पटना, १ दिसम्बर। बिहार राष्ट्रभाषा परिषद की पूर्व निदेशक और विदुषी लेखिका डा मिथिलेश कुमारी मिश्र हिन्दी और संस्कृत ही नही, पाली, प्राकृत एवं दक्षिण भारत की अनेक भाषाओं का प्रचूर ज्ञान रखती थीं। एक तपस्विनी की भाँति उन्होंने भारतीय भाषाओं की साधना की। कम वय में हीं उन्हें वैधव्य का दुःख झेलना पड़ा। किंतु जीवन के कठोर अनुभवों और पीड़ा से उन्होंने सृजन के उपकरण तैयार किए और साहित्य-देवता को हीं अपना पति मान कर जीवन-पर्यन्त साहित्य-व्रत किया। उत्तरप्रदेश की होकर भी वो बिहार की होकर रहीं। यह बातें, आज यहाँ साहित्य सम्मेलन में, विदुषी कवयित्री की ६८ वीं जयंती पर आयोजित समारोह और कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, मिथिलेश जी अपने वैदुष्य के कारण संपूर्ण भारतवर्ष में साहित्य-मनीषियों में लोकप्रिय थीं। दक्षिण भारत में उनका विशेष सम्मान था। वे देश भर के साहित्यिक-समारोहों में आदरपूर्वक आमंत्रित की जाती थीं। डा सुलभ ने डा मिश्र के व्यक्तित्व और कृतित्व पर, जिज्ञासा प्रकाशन, ग़ाज़ियाबाद द्वारा प्रकाशित और डा देवेंद्र तोमर द्वारा संपादित पुस्तक ‘याद बहुत आती हो’ का लोकार्पण भी किया।इसके पूर्व अपने स्वागत-संबोधन में सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पांडेय ने उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर विस्तार पूर्वक चर्चा की और कहा कि मिथिलेश जी पहली महिला हैं, जिन्होंने हिन्दी में महाकाव्य लिखा। संस्कृत में भी उन्होंने महाकाव्य का सृजन किया। भारतीय संस्कृति उनके साहित्य के मूल में रही। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत में साहित्य की सभी विधाओं में मूल्यवान रचनाएँ की। वह बहुमुखी प्रतिभा की लेखिका, कवयित्री और पत्रकार थीं। भाषा और साहित्य के लिए उनके हृदय में अपार श्रद्धा थी। उन्होंने साहित्य को हीं अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया। उन्होंने डा सत्यव्रत शास्त्री द्वारा सांस्कृत में लिखी ‘थाई रामायण’ का हिन्दी पद्यानुवाद किया था, जिससे प्रसन्न होकर थाई राजपरिवार ने उन्हें थाईलैंड में बुलाकर सम्मानित किया। थाई राजकुमारी तो उनसे इतनी प्रभावित थी कि उन्हें प्रायः स्मरण किया करती थीं।सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, वरिष्ठ नाटककार डा अशोक प्रियदर्शी, डा बी एन विश्वकर्मा, डा मुकेश कुमार झा तथा श्रद्धा कुमारी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।इस अवसर पर आयोजित कवि-गोष्ठी का आरंभ कवयित्री चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। डा शंकर प्रसाद ने अपने ख़याल का इज़हार यों किया कि, “मैं ग़म बनकर पिघलना चाहता हूँ/ तेरे अश्कों में ढलना चाहता हूँ”। कुमार अनुपम का कहना था- “हम भी सितारों को छाती में समेटना चाहते हैं/ दिल हमारा दरिया है, आसमां भी हम हैं”। व्यंग्य के कवि ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’ ने राजनीति की वर्तमान दशा पर प्रहार करते हुए कहा कि “लपेट-लपेट लाठी में लँगोटी वतन को बर्बाद कर दिया/ भारत-भक्तों को कारकर भस्म ग़द्दारों को आबाद कर दिया।”वरिष्ठ कवयित्री शकुंतला अरुण, संजू शरण, डा दिनेश दिवाकर, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, ब्रह्मानन्द पाण्डेय, मोईन गिरीडीहवी, कौसर कोल्हुआ कमालपुरी, राज किशोर झा ‘वत्स’, अर्जुन प्रसाद सिंह तथा नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल’ ने भी अपनी कविताओं का पाठ किया। मंच का संचालन सुनील कुमार दूबे ने किया।इस अवसर पर डा अरुण कुमार मिश्र, कौशलेंद्र कुमार, डा किरण शुक्ला, शम्भु कुमार सिंह, सुनील कुमार सिन्हा आदि प्रभुद्धजन उपस्थित थे।