पटना, ३ अगस्त। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा ‘राष्ट्र-कवि’ की उपाधि से विभूषित और भारत सरकार के पद्म-भूषण सम्मान से अलंकृत स्तुत्य कवि मैथिलीशरण गुप्त आधुनिक हिन्दी के उन महान कवियों में से थे जो नव विकसित खड़ी बोली का नाम ‘हिन्दी’ के स्थान पर ‘भारती’ रखने के पक्षधर थे। उनका मानना था कि, क्योंकि यह ‘भारत’ की भाषा है इसलिए इसका नाम ‘भारती’ हीं होना चाहिए। किंतु अन्य भारतीय नेताओं और विद्वानों की राय मानते हुए, इसे ‘हिन्दी’ ही कहा गया। नाम जो भी स्वीकृत हुआ हो, किंतु गुप्त जी जीवन-पर्यन्त भारत और भारती के गीत गाते रहे और यही प्रार्थना करते रहे कि “मानस-भवन में आर्यजन जिसकी उतारें आरती/ भगवान ! भारतवर्ष में गूँजे हमारी भारती”। वे खड़ी बोली के उन्नायकों में मूर्द्धन्य और ‘साकेत’ खंड-काव्य के रूप में रामकथा लिखने वाले हिन्दी के प्रथम कवि हैं।यह बातें बुधवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती समारोह और कवि-गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि गुप्त जी ने अपना संपूर्ण जीवन भारत की स्वतंत्रता के लिए अविराम संघर्ष और ‘भारती’ की साधना में समर्पित कर दिया। वे राज्य-सभा के भी सदस्य रहे। उन्होंने अपने पात्रों को सदैव जीवंत और लोक-कल्याणकारी बनाए रखा, जिनसे आज भी हज़ारों-हज़ार भारतवासी लोक-कल्याण और देश के प्रति समर्पण और त्याग की प्रेरणा पाते हैं। हृदय को लुभाने वाली उनकी ये पंक्तियाँ कि, “राम! तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है/ कोई कवि बन जाए सहज संभाव्य है”, करोड़ों भारतियों को प्रेरणा देती हैं। उनको स्मरण करना तीर्थ-यात्रा की भाँति पुण्यदायी है।आयोजन के मुख्यअतिथि और पूर्व केंद्रीय मंत्री डा सी पी ठाकुर ने कहा कि महाकवि गुप्त की कविताओं को पढ़ते हुए, हमारे जैसे विद्यार्थियों ने अपने छात्र-जीवन का आरंभ किया। उनकी कविताएँ हमारे मन में राष्ट्र-प्रेम भरती रहीं। महात्मा गांधी ने उन्हें ‘राष्ट्रकवि’ यों ही नहीं कहा। उनकी कविताओं में पहली बार राष्ट्रीयता की पूर्ण अभिव्यक्ति हुई।अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के उपाध्यक्ष दा शंकर प्रसाद ने कहा कि, मैथिली शरण जी की काव्य-धारा में राष्ट्रीय भाव का प्रवाह है। ‘साकेत’, ‘यशोधरा’ , ‘जयद्रथ वध’ तथा ‘भारत-भारती’ जैसी दर्जन भर अमर-कृतियाँ हैं, जो उनके महान काव्य-प्रतिभा का परिचय देती हैं। वे संपूर्ण भारतीय चेतना का प्रतिनिधित्व करते हैं।सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’, कुमार अनुपम, डा विनय कुमार विष्णुपुरी डा शालिनी पाण्डेय ने भी अपने विचार व्यक्त किए।इस अवसर पर आयोजित कवि-गोष्ठी का आरंभ जय प्रकाश पुजारी की वाणी वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवि एवं सम्मेलन के उपाध्यक्ष मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’, आरपी घायल, बच्चा ठाकुर, रमेश कँवल, आचार्य विजय गुंजन, ब्रह्मानन्द पाण्डेय, कमल किशोर ‘कमल’, सदानंद प्रसाद, डा सुषमा कुमारी, सुजाता मिश्र, मोईन गिरिडीहवी, जबीं शम्स निज़ामी, चितरंजन भारती, रश्मि गुप्ता, कौसर कोल्हुआ कमालपुरी, डा मीना कुमारी परिहार, अभिलाषा कुमारी, अर्जुन प्रसाद सिंह, ऋषिता गुप्ता, डा प्रतिभा रानी, राज आनंद, कुमार गौरव, डा महेश राय, नेहाल अहमद आदि कवियों ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं का हृदय जीत लिया। मंच का संचालन कवि सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।इस अवसर पर बाँके बिहारी साव, विजय कुमार दिवाकर, दुःख दमन सिंह, डा चंद्रशेखर आज़ाद, शिवानंद गिरी, अमित कुमार सिंह, अभिषेक कुमार, श्री बाबू , अमन वर्मा, राज कुमार, साजन कुमार आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।