पटना, ४ फरवरी। मुंशी प्रेमचंद की कहानियों पर लिखा गया नाटक ‘सद्गति’, समाज में व्याप्त ऊँच-नीच की भावनाओं और कुप्रथाओं पर कठोर प्रहार करता है। कवि-नाटककार ब्रह्मानन्द पाण्डेय द्वारा लिखित यह नाटक न केवल दलित-विमर्श को बल देता है, बल्कि नयी पीढ़ी में एक नए विचार को भी जन्म देता है।रविवार को कदमकुआं स्थित बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभागार में, सांस्कृतिक संस्था ‘डा राजेंद्र प्रसाद कला एवं युवा विकास समिति के कलाकारों ने नाटक की सुंदर प्रस्तुति की। अपनी-अपनी भूमिकाओं में सभी कलाकार मज़े हुए दिखायी दिए। दुखिया की भूमिका में सत्यम मिश्र, झुरी की भूमिका में हेमा, पंडित की भूमिका में सोनू कुमार, पंडिताइन की भूमिका में बशु, बुधिया की भूमिका में नाटक के निर्देशक संत कुमार तथा आदित्य और अमन के अभिनय को दर्शकों की ख़ूब सराहना मिली। संगीत-निर्देशन किया, संस्था के अध्यक्ष नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल’ ने।आरंभ में आयोजन के मुख्य अतिथि और सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया। विशिष्ट दर्शकों में डा शंकर प्रसाद, वरुण कुमार सिंह, प्रो सुशील कुमार झा, कुमार अनुपम, ई अशोक कुमार, डा अर्चना त्रिपाठी, डा शालिनी पाण्डेय,चंदा मिश्र, सागरिका राय, कृष्ण रंजन सिंह, सीमा यादव, बाँके बिहारी साव, सुनील कुमार उपाध्याय, डा प्रतिभा रानी, नरेंद्र कुमार, अरविंद कुमार अस्थाना, डा कुंदन सिंह लोहानी आदि उपस्थित थे।इसके पूर्व सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद का, उनके ८१वें जन्मोत्सव पर सम्मेलन द्वारा सम्मान किया गया। सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने उन्हें वंदन-वस्त्र और पुष्प-हार पहनाकर सम्मानित किया तथा उनके दीर्घायुष्य की कामना की।