CIN /स्वामी ज्योतिर्मयानंद सरस्वती का 92 वां जन्मोत्सव सह पादुका स्थापना समारोह उनके जन्म स्थान पर स्थित “स्वामी ज्योतिर्मयानंद आश्रम” में शुक्रवार को मनाया गया।दो दिवसीय इस कार्यक्रम को वेद विद्यालय के प्राचार्य सह वेदाचार्य पं. अजीत तिवारी एवं वैदिक विद्वान, आचार्यों द्वारा विधि विधान से संपन्न कराया गया। पूजा के लिए विमल कुमार (संस्था के सचिव एवं भारतीय पुलिस सेवा से सेवा निवृत) द्वारा विश्व कल्याण एवं शांति के लिए संकल्प ले कर गुरु के प्रति समर्पित भाव से पादुका स्थापना किया गया।संस्था के ट्रस्ट्री सह अन्तर्राष्ट्रीय योग समन्वयक एवं योग प्रशिक्षक अवधेश झा द्वारा योग, आसान, प्राणायाम, ध्यान एवं स्वामी ज्योतिर्मयानंद के दिव्य कार्यों के बारे में श्रद्धालुओं को बताया। साथ उन्होंने कहा कि “ब्रह्म सत्यम, जगत मिथ्या” के ब्रह्म विचार जिसका आधार भारतीय वेद, वेदांत दर्शन है जो कि विश्व के किसी विचार से श्रेष्ठ व पूर्ण है तथा समस्त दूसरे विचारों को भी अपना ही मानता है। किसी – किसी से भिन्नता कि बात नहीं करता। सम्पूर्ण जीव में वही परमात्मा का आत्मा स्वरुप में निवास है। और प्रत्येक व्यक्ति का लक्ष्यआत्मसाक्षात्कार होना चाहिए। इसी वेदांत दर्शन के विचार पर स्वामी जी का सम्पूर्ण क्रिया कलाप है। अवधेश झा द्वारा योग के विभिन्न आयामों- मुद्राओं के विषय में चर्चा एवं अभ्यास कराया गया।निशांत कुमार, तुलका एवं संस्था के अन्य सदस्यों द्वारा भव्य आयोजन किया गया तथा ज्योतिर्मय इंटरनेशनल स्कूल के बच्चों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम और गांव शोभा यात्रा निकाला गया और कविता व संगीत के माध्यम से लोगों को स्वामी जी के जीवन के बारे में बताया गया।स्वामी ज्योतिर्मयानंद जी का जन्म 3 फ़रवरी 1931 को सारण जिला स्थित श्री डुमरी बुजुर्ग गांव में हुआ था। वह बचपन से प्रखर बुद्धि और ज्ञान के धनी थे। उनका अध्यात्मिक व्यक्तित्व का प्रतिबिंब किसी न किसी रूप में लोगों को दर्शन होता रहता था लेकिन जब वह पटना साइंस कॉलेज के छात्र थे तब स्वामी शिवानंद सरस्वती के प्रवचन से प्रभावित होकर संन्यास ग्रहण कर अध्यात्मिक जीवन में पूर्णतः समर्पित हो गए। फिर गुरु के निर्दशानुसार वह अमेरिका जाकर योग रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना, मियामी, फ्लोरिडा में किए तथा वहां से उन्होंने भारतीय योग और वेदांत का प्रचार प्रसार सौ देशों में किए। स्वामी ज्योतिर्मयानंद का व्यक्तित्व दिव्य व ब्रह्मांडीय है।स्वामी ज्योतिर्मयानंद के गुरु भाई स्वामी सत्यानंद सरस्वती बिहार योग विद्यालय की स्थापना कर भारत तथा विश्व में भारतीय योग दर्शन की शिक्षा दिए। महर्षि पतंजलि द्वारा निर्देशित योग दर्शन की आध्यात्मिक भावना व चेतना को जागृत रखते हुए पूरे विश्व में स्वामी शिवानंद सरस्वती जी के दोनों शिष्य स्वामी ज्योतिर्मयानंद सरस्वती एवं स्वामी सत्यानंद सरस्वती की भूमिका ईश्वरी व दिव्य है। उसी कड़ी को अब आगे बढ़ा रहे है बिहार योग विद्यालय के परमाचार्य स्वामी निरंजनानंद सरस्वती।स्वामी ज्योतिर्मयानंद जी के निर्देशानुसार ज्योतिर्मय ट्रस्ट की स्थापना वर्ष 2014 श्री विमल कुमार एवं उनके सहयोगी अवधेश झा, अधिवक्ता मनोज कुमार, निशांत कुमार, श्रीमती रेणु कुमार आदि के द्वारा पटना में हुई तथा इसे योग रिसर्च फाउंडेशन, मियामी, फ्लोरिडा, अमेरिका की अधिकृत इकाई के रूप में मान्यता प्राप्त है जिसका मुख्य उद्देश्य स्वामी ज्योतिर्मयानंद जी द्वारा स्थापित किए गए अध्यात्मिक उद्देश्य को जन जन तक पहुंचाना है। स्वामी ज्योतिर्मयानंद अभी तक सत्तर से ज्यादा पुस्तक योग एवं अध्यात्म विषय पर लिख चुके है जो कि मानव कल्याण के लिए लाभप्रद है।योग एवं आध्यात्मिक उत्थान केन्द्र के रूप में स्थित स्वामी ज्योतिर्मयानंद आश्रम सारण में वर्ष 2019 ” ज्योतिर्मय संस्कार शाला ” का शुभारंभ किया गया जिसमें आस पास के गांव एवं मुहल्लों के बच्चों को शिक्षा व संस्कार दी जाती है। साथ ही ज्योतिर्मय इंटरनेशनल स्कूल का शुभारंभ भी वर्ष – 2020 में दूरगामी शिक्षा योजना के तहत की गई।सारण की धरती पर होने वाली इस आयोजन में कई गण्य मान्य लोग उपस्थित हुए। बिहार योग विद्यालय से प्रशिक्षित स्वामी रितेश मिश्रा इस कार्यक्रम में उपस्थित होकर लोगों को योग के बारे में बताया। तथा अश्विनी कुमार, प्रभात कुमार समेत कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।इस कार्यक्रम को ज्योतिर्मय ट्रस्ट एवं आश्रम के सचिव विमल कुमार के नेतृत्व में सम्पन्न कराया गया। इस अवसर पर आश्रम के सदस्य अवधेश झा, मनोज कुमार, रेणु कुमार, निशांत कुमार, तूलिका,निपुर सिन्हा, रजनीश योगी, विशाल सिन्हा सहित अन्य लोग उपस्थित थे।